बेखुदी
में भी प्यार आ जाए
फिर से
वोही बयार आ जाए
कब से
खामोश है कलम मेरी
कुछ लिखूं
तो करार आ जाए
कैसी
फितरत बना ली आदम ने
थोडा
रहमो-ख्याल आ जाए
जब भी
जिक्र गुजरे अफ्शाने करो
नजर में
वो ही प्यार आ जाये
सजदा
है कभी न आये खलिश
साजे
धुन पर सितार आ जाए
पल सम्हल
जाए सबके जीवन में
‘हर्फ़’ जो यादगार आ जाए