रात गुजरी है यूँही छत पे सहर होने को
कहीं तन्हाई डसेगी तो मुझे पूछोगे
जान होती है यूंही उम्र बसर होने को
कोई सदका नहीं ,सलाम नहीं,बात नहीं
क्यों छुपाते हो गमे अपना सजर होने को
जिस घडी मेरी निगाहों ने खालिस देखी थी
वक्त वो भी था कुछ और नजर होने को
जब से चलना ही रहा फितरते-अपनी कौशल
शाम देखि न सहर देखी फजल होने को
________~कौशल~______________
आज 21/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशवंत जी ...
हटाएंअच्छे अश आर हैं भाई शैर के तमाम ,भाव व्यंजना में अनुपम .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंram ram bhai
सर्दी -जुकाम ,फ्ल्यू से बचाव के लिए भी काइरोप्रेक्टिक
आभार आपके स्नेह का ... जरुर विरेन्द जी.. जरुर आऊंगा ..
हटाएं