मेरे अपने
डायरी के पन्ने...
मंगलवार, 17 सितंबर 2013
यूँ ही...
याद
आता
है
,
भूल
जाता
है
गुजर
लम्हा
कुछ
यूँ
सताता
है
कोई
शिकवा
न
रहा
जमाने
से
कौन
खोता
है
,
कौन
पाता
है
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