गम पास था कि पल
बड़े तन्हा थे शाम में
गुजर था वो ख्याल,
इसी दौरे-आम में
जब पास कि फिकर
पड़ी सब दूर थे बड़े
मौसम कि ये कशिस
थी बड़ी देर शाम में
कुछ उम्र कि
किताब पड़ी याद आ गया
सब कुछ था जो
लिखा हुआ ढलते पयाम में
रुसवा हैं
एक-दूसरे से हमसब क्यों इस तरह
वो फर्क ही बता
दो जो है अल्लाह औ राम में?
जीने को तो बदी
में भी जी लेते कितने लोग
हमको ही चैन है
नहीं दौरे-तमाम में
चलते हुए सफर में,,,,,,
बैठे जो सोचने
सारे ख्याल आये
बड़े एहतराम में
__________~कौशल~__________
वाह....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल...
दाद कबूल करें
अनु
शुक्रिया अनु जी ..पसंदगी के लिए आभार...
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