किसी को भूल गए, याद कर रहे थे कभी
ये अश्क आ के नम आख कर रहे थे कभी ||
ये अश्क आख में ही जब्ज हो चुके अब तो
रुमाल हाथ में ले साफ़ कर रहे थे कभी ||
याद आती है वो बातें, जब ना जाने क्यूँ
बड़े मजे से उन्हें माफ कर रहे थे कभी ||
अब सुकूं है, मगर फशाना वो, याद आता है
गुनाहगार ही इन्साफ कर रहे थे कभी ||
अब कहीं जाके "कौशल" बात ये समझ आई
कसूर क्या था और क्या बात कर रहे थे कभी ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें