शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

उसकी बोली बात का अंजाम ही कुछ और था

उसकी बोली बात का अंजाम ही कुछ और था
कल तलक उस शख्स का पैगाम ही कुछ और था

आज थकती हैं नहीं तारीफ़ में जिसके, जुबाँ
कल तलक उस शख्स का अंजाम ही कुछ और था

बदली बातें बदले चेहरे आईना दिखला रहा
कल तलक उस शख्स का ईनाम ही कुछ और था

कोई बतलाता है मुसाहिद कोई खादिम कहता है
कल तलक उस शख्स का नाम ही कुछ और था

========
नफरतो की आग में झुलसे विसाले लोग हैं
फूल खिलते थे जहां वो बाम ही कुछ और था

मंदिरों में या सियासत में जो है अब छाया हुवा
हमने पूजा था जिसे वो 'राम' ही कुछ और था

दूसरों की बात से मतलब है अब रखने लगा
पहले जिस किरदार का काम ही कुछ और था 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें