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डायरी के पन्ने...
शनिवार, 4 जनवरी 2014
जल के वीराने में कुछ देर, राख हो जाते
जल के वीराने में कुछ देर
,
राख हो जाते
ख्वाब ऐसे ही घरोंदों से गुजरते जाते
__
ख्वाब इन आखो के बेरम हैं बड़े
साथ चलते हैं कुछ दूर फिर मुड़ते जाते
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पैर दर पैर सिमटके चली है तन्हाई
जिस्त से पर्दा किये लोग बदलते जाते
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