नंगी सड़क पर
अविलम्ब चलते वो नन्हे पाँव
जिन्हें शायद डर है
मालिक की डांठ का
सर पे ईटों से भरा टोकरा ढोता
वो सकुचाता सा चला जा रहा है
वो बचपन
जो रोड़ी और बजरी में
कही खो गया है
बचपन के खिलोनों में
ईट और गारा
जिसे मुफ्त में मिला है
क्या ये दशा है या दुर्दशा ?
दशा ही होगी
क्योकि रत्ती भर भी
रोस नहीं है उसके चेहरे पर
या घर की मज़बूरी
रोस पैदा ही नहीं होने देती !!
मजबूर और मजदूर में
यही समानता है
मजदूर ही मजबूर है
और मजबूर ही मजदूर !!___
_________________: कौशल
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