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संजीदा मौसम था या कही कुछ हो पड़ा था
कोई सहमा सा कूचे पे... खड़ा था__
डरी सी शक्ल सहमी सी निगाहें
वो साया था, या हड्डी का कड़ा था__
न आखो में कोई उम्मीद न दिल में उमंगे
अब किस से पूछें , हाल ऐसा क्यों बना था__
निगाहे उसकी पूछे क्या मेरी गलती रही
मेरा घर जलाने का किसका, फैसला था__
न हिन्दू था न मुस्लिम था में, फिर भी
गुजरने वाला हर शख्स, क्यों ये पूछता था__
======~कौशल १०-०२-२०१२ ~========
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