शनिवार, 24 नवंबर 2012
जख्मी ख्याल भर गए बा-वक़्त साल भी
जख्मी ख्याल भर गए, बा-वक़्त साल भी
रिसता सा खून जम गया काटों के घाव भी
क्या क्या न चीज देखिये पावों में पड़ी हैं
तन्हाईयों की बेड़ियाँ, लिपटे अजार भी
कब से नाम ले के पुकारा करें मुझे
बदनाम हो गए हैं सुखनवर हजार भी
शामो कि रौशनी में नजर-भर समेट लो
जुडकर ही टूटते हैं हों शीशा या ख्वाब भी
कहने को 'हर्फ़' ही में मिला है कदों-जहाँ
जलने के बाद बच गयी यादें और राख भी
मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012
यूँ ही हर्फ़ बनके फिरा करूँ
यूँ ही हर्फ़ बनके फिरा करूँ
यूँ ही हर्फ़ बनके मिला करूँ
जो गुजर रही उस धूल में
तुझे कैसे अपनी सदा कहूँ
वो समझता मुझको रकीब है
में समझता उसको रकीब हूँ
ये तो है निगाह का मामला
में यहाँ रहूँ या वहाँ रहूँ
जो समझना चाहे मुझे समझ
हर रंग को तैयार हूँ
जो लगूं सुबह तो हूँ मखमली
जो बयार हूँ तो बयार हूँ
वो जो बोलते हैं खलूस से
मुझे याद करता नहीं है ‘हर्फ़’
जो रहा नहीं था कभी अलग
उसे कैसे खुद से जुदा कहूँ
रविवार, 7 अक्तूबर 2012
विसंगतियों की चोट
उगते सूरज सा तेज लिए
उतरा भू में अभिगाम हुआ
दो नैनों संग व्याकुल मुखडा
लाखो सपनो का गाँव हुआ
फूलो कि सेज मिली सोने
अम्बर खुसियो का धाम हुआ
छोटी सी दो अंजुलियों में
हर्षित सारा ब्रह्माण्ड हुआ
उगता चंदा खिलते तारे
यही कहानी कहते थे
सुन्दर परियों के डेने में
रात ढली कि घाम हुआ
............
कुछ करने कि थी चाह बड़ी
कुछ पाने का अभिमान हुआ
लहरों पे टिके घरोंदे पर
देखा उसका भी नाम हुआ
मानवता का ज्ञान उसे
कुछ अहसासों के बाद हुआ
बस्ती बस्ती जब भटक लिया
तब जाकर आराम हुआ....
घनघोर प्रलापों से उठकर
वो अंत-हीन भटका था बहुत
शीतल वन की थी चाह उसे
तपता रेत प्रलाप हुआ....
उस एकाकी अनजान प्रहर में
भटक-भटक कर टूट-टूट कर
अप्लव मंथन सा व्याकुल सा
अर्थ-हीन संताप हुआ.....
............
वो जाग गया वो भाग गया
जब देखा रूप निढाल हुआ
इस मदिरालय की हाला से,
बेहतर जाना बनवास हुआ.....
____ : कौशल
रविवार, 30 सितंबर 2012
वर्ण के नाम पर आरक्षण
द्रश्य १_______
अखबार में
इस्तहार निकला
फलां पोस्ट फीस
सामान्य ६००/- एसटी १००/-
एससी ५० /- मात्र
माँ-बाप ने किचन के
अखबार के नीचे ,
गुल्लक से
जहाँ से हो सके
रुपये इकठ्ठा किये
पर फिर भी कम पड़ गए
अपने नौनिहाल के फॉर्म के लिए .......
वह बोला ..
माँ इस देश में
गरीब होना पाप है
वर्ण चाहे कुछ भी हो ...
द्रश्य २____
सरकारी स्कीम निकली
वर्ण के नाम पर दलित तपके
को उठाया जाएगा
ऊँचे ओहदे वाले
दलितो ने सब्सिडी का
पूरा फायदा उठाया
लेकिन खेतों में काम
करने वाला हरुवा
जो अपने परिवार संग
अब भी उसी दशा में रहने को
बाध्य है ,, जैसा पहले था
कसूर किसका? ......
सरकार बोलती है
हरुवा का ही होगा
जो अपनी दशा से
उठना ही नहीं चाहता !!
........
मंगलवार, 11 सितंबर 2012
वियोग
है विरह या ये प्रलाप है
या झरती आसूं –माला है
शून्य समर्पित जिस वाणी को
ये वियोग रीति –हाल है
कभी सुनाई दें जो बाते
कभी है आप्लव व्याकुल आखें
शब्दों के ताने-बाने में
ये वियोग कि परिभाषा है
_____~कौशल~_______
शुक्रवार, 31 अगस्त 2012
बनाने वाले ने इस जहाँ में ना जाने कैसे नियम बनाया
बनाने वाले ने इस जहाँ में ना जाने कैसे नियम बनाया
किसी की लय में अजान आई ,किसी के सुर में है राम
आया ||
कोई तडफता है सादगी को किसी को भाती है रंगदारी
जहाँ में कैसे हैं रहने वाले सभी ने खुद को खुदा बनाया ||
जबां परेशाँ,निगाह है रुसवा, ये दौर है क्या
कहाँ की महफ़िल
जो सहने वाले थे..सह के बोले, क्या हाल खुद का
है ये बनाया ||
कभी पशेमाँ जो हो सको... तो ला के दे दो वो चार लम्हे
जहाँ समझ के हर एक इन्शान हमी ने अपना वतन बनाया ||
कभी जो "कौशल" वो याद करके जी भर के रोया, सकूँ ना आया
जहाँ थिरकती थी जिंदगी अब वहाँ पे हिज्र-ए -मकाम पाया ||
_______________~कौशल~____________________
रविवार, 26 अगस्त 2012
किसी को भूल गए, याद कर रहे थे कभी
किसी को भूल गए, याद कर रहे थे कभी
ये अश्क आ के नम आख कर रहे थे कभी ||
ये अश्क आख में ही जब्ज हो चुके अब तो
रुमाल हाथ में ले साफ़ कर रहे थे कभी ||
याद आती है वो बातें, जब ना जाने क्यूँ
बड़े मजे से उन्हें माफ कर रहे थे कभी ||
अब सुकूं है, मगर फशाना वो, याद आता है
गुनाहगार ही इन्साफ कर रहे थे कभी ||
अब कहीं जाके "कौशल" बात ये समझ आई
कसूर क्या था और क्या बात कर रहे थे कभी ||
गुरुवार, 2 अगस्त 2012
गज़ल
गम पास था कि पल
बड़े तन्हा थे शाम में
गुजर था वो ख्याल,
इसी दौरे-आम में
जब पास कि फिकर
पड़ी सब दूर थे बड़े
मौसम कि ये कशिस
थी बड़ी देर शाम में
कुछ उम्र कि
किताब पड़ी याद आ गया
सब कुछ था जो
लिखा हुआ ढलते पयाम में
रुसवा हैं
एक-दूसरे से हमसब क्यों इस तरह
वो फर्क ही बता
दो जो है अल्लाह औ राम में?
जीने को तो बदी
में भी जी लेते कितने लोग
हमको ही चैन है
नहीं दौरे-तमाम में
चलते हुए सफर में,,,,,,
बैठे जो सोचने
सारे ख्याल आये
बड़े एहतराम में
__________~कौशल~__________
मंगलवार, 10 जुलाई 2012
:फिर ना याद आ तू मुझे :
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क्या है वो बात ये बता तू मुझे
फिर से एक रोज आजमा तू मुझे .....
दर्द कैसा है ये खालिस क्यों है
ना दे बदली हुयी फिजा तू मुझे .....
चोट के साथ घाव लग जाता
याद कर के ना भूल जा तू मुझे .....
बारिशें हो रही यहाँ दिल में
अब ना हर रोज यूँ सता तू मुझे .....
जाम रक्खे है बचा याद के मोती डाले
"कौशल" हर रोज ना पिला तू मुझे ....
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क्या है वो बात ये बता तू मुझे
फिर से एक रोज आजमा तू मुझे .....
दर्द कैसा है ये खालिस क्यों है
ना दे बदली हुयी फिजा तू मुझे .....
चोट के साथ घाव लग जाता
याद कर के ना भूल जा तू मुझे .....
बारिशें हो रही यहाँ दिल में
अब ना हर रोज यूँ सता तू मुझे .....
जाम रक्खे है बचा याद के मोती डाले
"कौशल" हर रोज ना पिला तू मुझे ....
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गुरुवार, 5 जुलाई 2012
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.....
पता मेरा लिए कुछ पुराने ख्वाब आये थे
पूछते थे की वो शख्स रहता था यहां
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.............
पूछा किये थे सभी से राहगुजर थे जो भी
कहाँ है वो शख्स जो रहता था यहाँ
बुनता था हमें जो खुले आसमा के नीचे
ख्वाब आये थे खोजते मुझको...............
किसी ने झिड़का किसी ने समझाया
नहीं पता कहाँ है वो शख्स जो रहता था यहाँ
क्यूँ ढूंडते हो ना मालूम बिखर गया है कहाँ
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.......
कहीं से एक हवा आई गुजती बहती
ख्वाबो ने दोहराया वही शख्स रहता था यहाँ
हवा बहती हुयी बोल कानो में .......
ढूंडते हो जिसे वो शख्स कबका मर भी गया.......
अब तो सिर्फ जिस्म है जो रूह थी
उसका पता उसको भी नहीं जो रहता था यहाँ
ढूंडते हो किसे वो तो है ही नहीं.........
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.........................
__________~कौशल~______________
रविवार, 1 जुलाई 2012
गज़ल:रात गुजरी है यूँही छत पे सहर होने को
रात गुजरी है यूँही छत पे सहर होने को
कहीं तन्हाई डसेगी तो मुझे पूछोगे
जान होती है यूंही उम्र बसर होने को
कोई सदका नहीं ,सलाम नहीं,बात नहीं
क्यों छुपाते हो गमे अपना सजर होने को
जिस घडी मेरी निगाहों ने खालिस देखी थी
वक्त वो भी था कुछ और नजर होने को
जब से चलना ही रहा फितरते-अपनी कौशल
शाम देखि न सहर देखी फजल होने को
________~कौशल~______________
शुक्रवार, 22 जून 2012
गज़ल
कौन कहता है कोई जोर नहीं
दिल ये शायाँ* कोई कमजोर नहीं
कोई बतलाता है अपनी,कोई
कहता अपनी
सबा* किसकी है कोई ठौर नहीं
अह्बाबे-गम* से मुखालिफ हुए
तो क्या अच्छा
मरासिम* न रहा अब है कोई और
नहीं
कहाँ ख़ाबीदा* हुए रात की ढलती रो पर
मसाफत* से तो अच्छा है गमे-दौर
नहीं
कौन समझेगा दिले-टेसू कौशल
रेजदे* है ये मेरे कोई
अना-दोर* नहीं
________~कौशल~__________
मायने
शायाँ = लायक,,,सबा = हवा,,,अह्बाबे-गम = दोस्ती का गम
मरासिम= रिश्ते,,,,ख़ाबीदा = सोया हुआ, सुप्त, निद्रित
मसाफ़त = distance, दूरी, फ़ासला,,, रेजदे= लिखना, काव्य पाठ,,, अना-दोर= घमंडी वाक्य
गुरुवार, 14 जून 2012
बातें असर होगी..
कभी चर्चा चला पहरों ,कहीं महफ़िल ग़ज़ल होगी
मेरे हिबड़े की हसरत कल तेरे अहले नजर होगी
में फरमाऊ बता क्या? मेरे दिल की सुन सके कोई
मुझे जिस बात का था इल्म ,बाते वो असर होगी
सुना है.... दूर बस्ती में सहर होती है इठलाकर
जो गुजरूँ उस गली हमपर भी थोड़ी तो फ़जल होगी
बस अब थोड़ी सी जुम्बिस रह गई, वो याद आता है
क़ज़ा होने से पहले ज़िन्दगी यूँ ही बसर होगी
कहाँ इमान "कौशल" लुट गया बैरम ज़माने का
यही बतलाएं अपना कुछ न बस, अंजामे-सजर होगी
__________~कौशल~____________
________________________
मायने :::::::::::::::::::
हिबडा: दिल ,ह्रदय ,
फ़जल : कृपा ,,
जुम्बिस : जुडाव ,,
क़ज़ा : बरबाद,,
सजर : कब्र ,ताबूत
रविवार, 10 जून 2012
ग़ज़ल
मोहोबत का असर है ये कि कुछ खोया नहीं जाता
कभी दिनभर भटकता हूँ कभी सोया नहीं जाता
जहाँ में ढूढता था चेन ,शहरे-शोरगुल ही था
कभी महसूस होता कुछ ,कभी बोला नहीं जाता
जुबान खामोश है लेकिन समंदर बह रहा अन्दर
कभी लहरों में गुम जाऊं ,कभी खोया नहीं जाता
पुकारा जब निगाहों से तो हरदम बेकरारी थी
कभी जीभर निहारूं और कभी देखा नहीं जाता
लगी है चोट ऐसी, जिसका देखो क्या मजा कौशल
कभी हँसाना मुनासिब न, कभी रोया नहीं जाता
_________~कौशल ~_______________
गुरुवार, 31 मई 2012
यूँ ही कभी
नजरो से मेरी
ताकता है वो कहीं
शायद घटाए
या फिजायें
या लटो की
सुरमई बिखरी अदाए
अक्सर मेरी नजरो से
झाकता है वो ...
कुछ ख्वाब
बुनने की ललक
कुछ तिश्नगी का इरादा
कुछ पनाहों में बुलाना
कुछ शरारत का है वादा
जब भी नजर उठती है
वो ही झाकता है
हर कहीं
अक्सर निगाहों से मेरी...
********
उसका इरादा साफ़ है
वो मनचला अहसास है
कुछ भाव है उसके लिए
कुछ अनकहे एहसास हैं
मेरी निगाहों से बयां
मेरे ही दिल के राग हैं
_____~कौशल ~______
बुधवार, 30 मई 2012
आज इसकी भी
बात होने दो
शक्ल कैसी भी
हो बुरी तो
नहीं
तारीफे-महफ़िल में ये
भी बात होने
दो...
ख्वाब मंसूबे-ऐ-बीराने
तो नहीं
मत रोको इन्हें
,,बरसात होने दो....
जिंद ले के
चले, बच गया
जिस्म-ए-चिराग
इसी में ज़ज्ब
तारीख़े-आजाब होने
दो....
______~कौशल~__________
जिंद : जिंदगी
आजाब: अनोखा ,निराला
ज़ज्ब : बंदी, जकड़ना
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