शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

यूँ ही ...

अंतर्द्वंद तेरे अंदर भी है मेरे भी
पत्थर से चोट लगने पर
दर्द तुझे भी होता है मुझे भी
कुछ निरीह भाव
तेरे मन को भी उद्द्वेलित करते हैं
मेरे मन को भी
विचारों के टकराव में स्पंदन
तेरे अंदर भी है मेरे भी
फर्क है तो वो बस इतना है
तुझे दिखाना आता है और मुझे छुपाना .....