रविवार, 4 सितंबर 2011

“वो लम्हे”


आज कुछ लिखने को दिल किया      
तो उठा लिए कुछ सूखे पत्ते       
जिन्हें आज की जुबाँ में शायद ‘डायरी’ कहते हैं  
उड़ेल डाली दिल की सारी बातें     
जो शायद ना बोलने की कसमे खाई थी कभी    
उन बातों को लिख कर कुछ सुकून तो मिला
जो बाते बहुत रुलाती थी मुझे....
मौसम में कुछ नमी सी है शायद ये इसका कसूर है
या मौसम की आड़ में दिल के गुबार फिर सिसक पड़े हैं
इन अल्फाजो की डोरी को कविता मत  कहना  ए मुआजिल
ये चंद फटें पन्ने है मेरी ज़िन्दगी के.....                                                                                                                    -(कौशल)

गज़ल: “ख्वाब”


      तुम  से बेहतर  तो ये ख्वाब है
      जो रात को आते तो हैं
      धीरे से ही सही
      आके दिल को धड्काते तो हैं
      इन्तजार करना इन्हें पसंद नहीं
      नीद के साए में खिलखिलाते तो हैं
      मंजिलो की परवाह नहीं इन्हें
      बस सकूँ  सा  दे  जाते तो हैं
      तेरी  याद  जब सताती  है दिन भर  
      रात में आके ये सुलाते  तो हैं
      फ़ैल गयी है रात की चादर "कौशल"
      दूर तलक यादों  के साए तो हैं  
                        - कौशल