आज कुछ लिखने को दिल किया
तो उठा लिए कुछ सूखे पत्ते
जिन्हें आज की जुबाँ में शायद ‘डायरी’ कहते हैं
उड़ेल डाली दिल की सारी बातें
जो शायद ना बोलने की कसमे खाई थी कभी
उन बातों को लिख कर कुछ सुकून तो मिला
जो बाते बहुत रुलाती थी मुझे....
मौसम में कुछ नमी सी है शायद ये इसका कसूर है
या मौसम की आड़ में दिल के गुबार फिर सिसक पड़े हैं
इन अल्फाजो की डोरी को कविता मत कहना ए मुआजिल
ये चंद फटें पन्ने है मेरी ज़िन्दगी के..... -(कौशल)