मेरे अपने
डायरी के पन्ने...
शुक्रवार, 22 अगस्त 2014
तितली
तरह तरह के रंग लिए
तितली
पहले उड़ा करती थी
घूमा करती थी
वन उपवन में
निर्भय निर्वेग
अब नहीं दिखती
शायद
रंग खोने का डर
या घरों में सजाने का प्रपंच....
अब उड़ने की
गवाही नहीं देता
___________
तितली तो उड़ने के लिए ही होती है ना ....
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