शनिवार, 10 दिसंबर 2011

उसने.....



कर के भी जतन रात दिन कुछ हाथ न आया 
मेहनत का नतीज़ा मेहनत नहीं पाया 
भूके ही सो गया वो बस पानी के सहारे
उसकी खबर को कोई फरिस्ता नहीं आया ||


कुछ था ही नहीं पास जो कुछ उसने गवाया 
मिट्टी का खिलौना था मिट्टी में ही आया 
कुछ प्यार मोहोबत को बेताब रहा दिल
कुछ पा लिया तो खो दिया कुछ आज कमाया ||
-(कौशल 10-dec-2011)




मंगलवार, 29 नवंबर 2011

में न फिर आऊंगा ....


अब सता मुझे में फिर आऊंगा
गुजरा लम्हा हूँ बस अब याद आऊंगा||||
ख्वाहिशो को तू इतना आसान कर
जो चला हूँ तो फिर नजर आऊंगा ||||
वक़्त जो बीते पंछी सा उड़ता सा है
उसके संग ही कही में भी उड़ जाऊंगा ||||
फिर ना आसूं  बहा ना ही अब याद कर
"कौशल" बहता हुआ अब कहाँ जाऊंगा? |||| 
-(कौशल: 29-nov-2011)

तो क्या करते……..



ये हँसी मुझे गवारा ना हुई  
रोना ही था किस्मत में तो क्या करते .............

हम तो थे बरसात में  छाता लिए हुए
बारिश ही हवा के साथ आयी तो क्या करते…………

मुकम्मल वक़्त की ख्वाहिस करते करते
आधी गमो की ही आयी तो क्या करते ...............

जब भीगना ही था किस्मत में
धूप भी बरसात ही लाई तो क्या करते ............
                                                (कौशल: 29-nov-2011)

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

अंदाज़

ये  आखे  है  मेरी  जो  हर  हकीकत  बोल  देती  हैं 
समंदर  में  फसी कस्ती की राहें खोल  देती  हैं 
दिखती  है  आखे   बेजुबा  से  इन  गलीचो  में  
मगर  एक  रोज़  वो  ही  दिल  बेचारा तोड़ देती हैं ||१|

ज़माने  की  छुपी  आवाज  अब  भी गूंजती  सी  है 
सवालो  की  कोई   ललकार  इतनी  आफरी सी  है 
यहाँ  कहते  मोहोबत  जिस  बाला  को  वो  भला  क्या  है 
कोई   समझाए   मुझको  ये  मरासिम  बेवफा  क्या  है ||२||

बेवक्त  की  बरसात  की  आदत  सी  हो  गयी 
इस  सहरे  नामुराद  की  फितरत  ही  ऐसी   है 
लोगो  ने  अपने  इल्म  को  आचल  में  भर   लिया 
पगला  खड़ा  सा  देखता  काटें  कहाँ  पे  हैं ||३||
(कौशल :20-oct-2011 )

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

एक बात ...


जो  याद  नहीं  वो  बीत  गया
जो  याद  है  वो  आने  वाला
जो  बिछड़ गया  वो  धोका  था
जो  साथ  है  वो  आने  वाला ||१||

जब  रात घिरी तो  तारो  ने
मुझसे  ये  पूछा बात  है क्या?
मेने  दोहराया  पानी  में
कुछ  ख्वाब है जो मिलने वाला  ||२||

धरती  से  उठ  के  एक  बादल
उचे  अम्बर  पे  जा  बैठ  गया
कोई  बोले  अब  इस  पगले  से
तू  भी  एक  दिन  रोने  वाला ||३||

मजधार  पे  नया  डौल  रही
माझी न  सही   पतवार  तो  है
जब  तक  हाथो  में  जान  ये  है
कौशल  तू  न  रुकने  वाला  ||४||
-(कौशल :18 oct-2011)

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

सुबह


विश्वास मुझे है इस धरती पर
एक नयी “सुबह” भी आयेगे
जब मिट जायेगे ये दूरी
कट जायेंगे जात पात की बेडी
मानव रहेगा सिर्फ मानव
न कोई धर्म न कोए मजहब
हर आदमी के दिल में होगा एक सपना
प्यार करो सारी दुनिया से
हमें है मिलकर रहना
उस दिन बन जायेगे धरती
स्वर्ग से भी बढकर
नहीं दिखेगा कोई भूखा-नंगा
सब सोयेंगे स्नेह की छाव
मानवता हर और कही
मडराएगी , हर्षाएगी,
हँसते मुस्काते चेहरे
बच्चो के हो जायेंगे
उस दिन सचमुच धरती माँ अपनी
स्वर्ग रूप हो जाएगी                -(कौशल :7-sep-2003)   

रविवार, 4 सितंबर 2011

“वो लम्हे”


आज कुछ लिखने को दिल किया      
तो उठा लिए कुछ सूखे पत्ते       
जिन्हें आज की जुबाँ में शायद ‘डायरी’ कहते हैं  
उड़ेल डाली दिल की सारी बातें     
जो शायद ना बोलने की कसमे खाई थी कभी    
उन बातों को लिख कर कुछ सुकून तो मिला
जो बाते बहुत रुलाती थी मुझे....
मौसम में कुछ नमी सी है शायद ये इसका कसूर है
या मौसम की आड़ में दिल के गुबार फिर सिसक पड़े हैं
इन अल्फाजो की डोरी को कविता मत  कहना  ए मुआजिल
ये चंद फटें पन्ने है मेरी ज़िन्दगी के.....                                                                                                                    -(कौशल)

गज़ल: “ख्वाब”


      तुम  से बेहतर  तो ये ख्वाब है
      जो रात को आते तो हैं
      धीरे से ही सही
      आके दिल को धड्काते तो हैं
      इन्तजार करना इन्हें पसंद नहीं
      नीद के साए में खिलखिलाते तो हैं
      मंजिलो की परवाह नहीं इन्हें
      बस सकूँ  सा  दे  जाते तो हैं
      तेरी  याद  जब सताती  है दिन भर  
      रात में आके ये सुलाते  तो हैं
      फ़ैल गयी है रात की चादर "कौशल"
      दूर तलक यादों  के साए तो हैं  
                        - कौशल

रविवार, 21 अगस्त 2011

वो पूछता है मुझसे


वो पूछता है मुझसे
ज़िन्दगी क्योँ इतनी अनजान सी हो गयी है ,
की हर तरफ बस अधेरा हे दिखता है
वो पूछता है मुझसे...
क्योँ वफ़ा का बदला वफ़ा होकर कुछ और ही है
ज़िन्दगी में जीने से अधिक कुछ क्योँ नहीं है
वो पूछता है मुझसे....
दिल का दर्द बताना कितना मुश्किल है
ग़मों को साथी बनाना कितना मुश्किल है .
वो पूछता है मुझसे......
प्यार करके निभाना आशां नहीं लेकिन
तोड़ना इतना आशां क्योँ है
वो पूछता है मुझसे.....
क्योँ में पागल सा रहता हू ज़िन्दगी के मोड़ पर
कोइ क्योँ नहीं पूछता की "मैं कौन हू "
वो पूछता है मुझसे.....
क्योँ दोस्ती सिर्फ मतलब के लिए होती है
यही दुनिया की रीत है तो ये दुनिया -दुनिया क्योँ है
वो पूछता है मुझसे.......
क्योँ हर तरफ़ हाहाकार है ज़माने में क्योँ हर तरफ संघार है
हर तरफ हुनकर है
वो पूछता है मुझसे...........
क्योँ हो गया है आदमी आदमी का दुश्मन
हर जगह है नफरत
क्योँ खो गए मोहोबत
वो पूछता है मुझसे.........
की तू इतना उदास क्योँ है
ज़िन्दगी एक छुपा हुआ राज़ क्योँ है
हर समय बनवास क्योँ है
वो पूछता है मुझसे......
जीने की आरजू मे क्योँ मरे जा रहे हैं लोग 
मारकर भी कम अकल जिये जा रहे हैं लोग
वो पूछता है मुझसे......
राम की इस दुनिया मे क्योँ चैन नहीं मिलता
हर तरफ़ रावण है क्योँ राम नहीं मिलता
वो पूछता है मुझसे..........

                                        - कौशल "आवारा"

पत्ता और फूल


                              एक सूखा पत्ता था ,
                              पागल सा आवारा सा ,
उड़ता पंहुचा उपवन में,
भरा था फूलों से जो सारा,
मिल कर उनके साथ उसे
कुछ अहसासों का ज्ञान हुआ ,
प्यारे से फूल को देख ,
उसे भी उससे प्यार हुआ .
बाकी पत्ते भी कहते थे ,
फूल तो आखीर तेरा है ,
तुम दोनों का मिलन यहाँ ,
होना ही होना है ,,
पर नादा था पागल बेचारा ,
अपनी ही धुन  का था आवारा ,
आधी जो दूर कहीं से आयी ,
उड़ गया फूल हाई दुहाए,
कुछ हाथ ना उसके आया,
प्यासा पड़ा रहा जमीन पर ,
देखता रहा मौसम बदलेगा ,
लेकिन हाई रे किस्मत ,
ना मौसम बदला ना फिजा
मिटटी में मिल गया एक दिन
बेखबर होकर बेचारा
इन्तजार करता रहा
पर ना वो फूल आया ना कोइ खबर ......
                                                      - कौशल "आवारा"