मेरे अपने
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शुक्रवार, 27 जून 2014
एक बेशर्म....
बेशर्मी तब आई जब
कचोटा गया
ललकारा गया
उकताया गया
अपने अस्तित्व के लिए
अपने मान के लिए
......
जब अपने अंदर झाकोगे
तब समझोगे
......
शर्म करने को जब
कुछ बचता नहीं ...
तब इन्शान
बेशर्म ही बन जाता है .....
दिल में जो आये वो पैगाम लिखना
दिल
में
जो
आये
वो
पैगाम
लिखना
हमने
सहर
लिखा
..
तुम
शाम
लिखना
कुछ
इस
तरह
से
दिलों
के
रंज
भुला
मेरे
हिस्से
कि
धूप
भी
अपने
नाम
लिखना
कलम
जमाने
से
रख
के
रूबरू
महके
जो
हर
खिजां
में
वो
बाम
लिखना
मन
को
फैला
के
दुनियाँ
से
बड़ा
कभी
काबा
तो
कभी
चार
-
धाम
लिखना
कौशल
इस
तरह
अपनाना
खुद
को
दिल
कि
बात
दिल
से
बे
-
लगाम
लिखना
समय बड़ा बलवान
राजा
को
तू
रंक
बना
दे
रंक
को
दे
दे
ताज
बिछडो
को
तू
गले
मिलाये
मीतो
को
बिछडाये
तेरे
तो
गुणगान
करे
सब
लोग
लगाये
आस
अब
बदलेगी
किस्मत
मेरी
सर
पर
होगा
ताज
बनके
ऑफिसर
आऊंगा
गर
तू
रहा
मेहरबान
शासन
देश
का
चलाऊंगा
गर
तूने
दे
दिया
ताज
समय
बड़ा
बलवान
रे
भाई
समय
बड़ा
बलवान
....
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