सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

वो झीनी खिड़की


वो झीनी सी खिड़की
जिससे झाकते बचपन बीता था
दिन भर उसके सामने बैठा
अपने खयालो में गुम
बस देखना

कभी तितली को उड़ते
कभी बंदर को डाली पर टहलते
खुद ही के साथ खेलना
बरबस लोगो को गुजरते देख
ख़ुशी से चिल्लाना
सरपट हाथ पैर हिलाना

खिड़की के सामने एक पीपल का पेड़
जिसपर दो गिलहरियाँ खेलती
उछलती कूदती
और एक पल में गुम हो जाती
नजरो का उन्हें ढूढना

कुछ यादे जो हमेशा साथ रहती हैं
ऐसी ही ___
बचपन की वो झीनी खिड़की
याद रही है आज भी _______      :कौशल


शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

दहाड़


चाहे तलवार हो या सिंह की दहाड़ हो या
पर्वत अड़े हो राह पर शान से
हिम्मत कभी न हरो बस चलना ही जानो
हौसले से जीतते है न की तलवार से ___

बस ये उमंग सी है आज वोही संग सी है
एक ख़ुशी मिली थी यूँ ही सुनसान से
तोड़ लिए ख्वाब सारे आशमा के चाँद तारे
राह में बाँहें ताने,, खड़े है बड़ी शान से ___

दुश्मन कोई आये देश की शपत उठायें
जान भी दे जायेंगे गर मागे माँ, शान से
देश के युवा है जब जाग उठे आज सारे
भ्रस्टाचारी भागेंगे मुह छिपाए सरेशाम से___ :( कौशल )


mere aapne: ग़ज़ल >> इश्क

mere aapne: ग़ज़ल : इश्क: इश्क करना फिर इश्क को भुला देना कारवां ज़िन्दगी का यूँ ही बिता देना है बड़े अर्ज़ इस ज़माने वालो को कौन चाहता है दुनिया में पशेम...

mere aapne: अर्ज़

mere aapne: अर्ज़: अर्ज़ है तुझसे ये सजा न दे ज़िन्दगी छीन ले दगा न दे__ मुझपे इतना करम तो कर जाना आग लगती है तो हवा न दे__ तुझे पूजा है मैने सदियों से...

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

अर्ज़


अर्ज़ है तुझसे ये सजा न दे
ज़िन्दगी छीन ले दगा न दे__
मुझपे इतना करम तो कर जाना
आग लगती है तो हवा न दे__
तुझे पूजा है मैने सदियों से
फूल ही खिलने दे खिजा न दे __ :कौशल

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

ग़ज़ल >> इश्क


इश्क करना फिर इश्क को  भुला देना    
कारवां ज़िन्दगी का यूँ ही बिता देना  
है बड़े अर्ज़ इस ज़माने वालो को
कौन चाहता है दुनिया में पशेमाँ होना__

हवाए घिरने पे ये गुमा होना
कद्रदां आशमा मेरा होना
इश्क की ताशीर अच्छी लगती है
मुश्किल ही होता है इसे निभा लेना__

क्या जरुरी है यूँ ही तन्हा होना
बैठ कर सारी रात ये गुमा होना
रंग इश्क के बिखर ही जायेंगे
गर बंदगी हो तो इन्हें सजा लेना ___

कुछ बाते समझने का तजरुबा होना
आदमी का वक़्त से रुसवा होना
इश्क कर के फिर उसे भुला देना
दिल दुखता है इश्क में दगा देना___

क़यामत से पहले ये फलसफा होना
हीर-रांझे की तरह इश्क में फ़ना होना
जान जाये या क़त्ल हो जाये
इसकी खिदमत में ज़िन्दगी बिता देना__

-(कौशल)

पशेमाँ=शर्मिंदा ;

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

वो



जब कहीं दिल में आस होती है
वो  कही आस पास होती है
जब भी मिलता हूँ अपने साए से
उसकी ही याद साथ होती है
मुझको मिलना था उससे सदियों से
रोज हर शाम आस होती है
उसके रुकसार को तरसता हूँ
प्यार की जब भी बात होती है
वो मेरा अश्क है या साया है
मेरे ही दिल के पास होती है____: (कौशल )
 

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

कोई आया है शायद ...

शहनाईयां सी बजने लगी जंगल के शौर में 
कोई आया है शायद ...
जिसके लिए दिन रात पलकें बिछाये था ये मन 
ताकते ही ताकते कब दिन हुआ कब ढल गया 
मालूम नहीं ......
वीरानियो की चादरें ओड़े हुए समां
कब ढल गया पिघल गया
मालूम नहीं ......
 दीद की वो रात अब तो याद आयेगी
आँखों में वही प्यास फिर भी क्यों रह गयी
मालूम नहीं .....
शायरी की जुबानी याद "कौशल" आ गयी
'मौत' फिर भी क्यों न आयी 
मालूम नहीं ... - (कौशल :15-sep-2011)