शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

बनाने वाले ने इस जहाँ में ना जाने कैसे नियम बनाया


बनाने वाले ने इस जहाँ में ना जाने कैसे नियम बनाया
किसी की लय में अजान आई ,किसी के सुर में है राम आया ||

कोई तडफता है सादगी को किसी को भाती है रंगदारी
जहाँ में कैसे हैं रहने वाले सभी ने खुद को खुदा बनाया ||

जबां परेशाँ,निगाह है रुसवा, ये दौर है क्या कहाँ की महफ़िल
जो सहने वाले थे..सह के बोले, क्या हाल खुद का है ये बनाया ||

कभी पशेमाँ जो हो सको... तो ला के दे दो वो चार लम्हे
जहाँ समझ के हर एक इन्शान हमी ने अपना वतन बनाया ||

कभी जो "कौशल" वो याद करके जी भर के रोया, सकूँ ना आया
जहाँ थिरकती थी जिंदगी अब वहाँ पे हिज्र-ए -मकाम पाया ||
 _______________~कौशल~____________________

रविवार, 26 अगस्त 2012

किसी को भूल गए, याद कर रहे थे कभी


किसी को भूल गए, याद कर रहे थे कभी
ये अश्क आ के नम आख कर रहे थे कभी ||

ये अश्क आख में ही जब्ज हो चुके अब तो 
रुमाल हाथ में ले साफ़ कर रहे थे कभी ||

याद आती है वो बातें, जब ना जाने क्यूँ  
बड़े मजे से उन्हें माफ कर रहे थे कभी ||

अब सुकूं है, मगर फशाना वो, याद आता है 
गुनाहगार ही इन्साफ कर रहे थे कभी ||


अब कहीं जाके "कौशल" बात ये समझ आई
कसूर क्या था और क्या बात कर रहे थे कभी ||

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

गज़ल


गम पास था कि पल बड़े तन्हा थे शाम में
गुजर था वो ख्याल, इसी दौरे-आम में

जब पास कि फिकर पड़ी सब दूर थे बड़े
मौसम कि ये कशिस थी बड़ी देर शाम में

कुछ उम्र कि किताब पड़ी याद आ गया
सब कुछ था जो लिखा हुआ ढलते पयाम में

रुसवा हैं एक-दूसरे से हमसब क्यों इस तरह
वो फर्क ही बता दो जो है अल्लाह औ राम में?

जीने को तो बदी में भी जी लेते कितने लोग
हमको ही चैन है नहीं दौरे-तमाम में

चलते हुए सफर में,,,,,, बैठे जो सोचने
सारे ख्याल आये बड़े एहतराम में
__________~कौशल~__________