शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

स्वतंत्रता दिवस की अनेकों शुभकामनायें
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स्वतंत्रता का अमर दीप वीरो ना बुझने पाये
देश की रक्षा का प्रण लो झंडा ना झुकने पाये
ये सीमाएं शान देश की गौरव का है ये प्रतीक
कोई दुश्मन कभी लाँघ इसे देश में ना घुसने पाये
देश हमारा प्यारा है ये आन हमारी है
देश की रक्षा के खातिर ये जान हमारी है
रिपु कोई भी कैसा भी इसको ना छूने पाये
स्वतंत्रता का अमर दीप वीरो ना बुझने पाये।
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सोमवार, 1 दिसंबर 2014

याद रहेगी

याद रहेगी
मन के बिखरावों
कि सीमा
जलते बुझते ख़्वाबों
कि चोखट याद रहेगी
याद रहेगी
इस धरती से
उस अम्बर तक
उम्मीदों के बनने मिटने
कि अनबन याद रहेगी
याद रहेगी
दिन कि वो ख़ामोशी
चाँद कि रातों में आने कि
तानाशाही याद रहेगी
याद रहेगी
वादों के बंटवारे
दिल कि गहराई में
उलझन तडफन याद रहेगी

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

परिवर्तन

परिवर्तन
सिर्फ एक शब्द नहीं
इसके होते ही
बहुत कुछ नया हो जाता है
कुछ पुराना पीछे छूट जाता है
कुछ खो जाता है
कुछ मिल जाता है
बच जाते हैं
कुछ अवशेष.. कुछ यादें
कुछ ख्वाब .. कुछ वादे
सब कुछ पाने के बाद भी
मानव बहुत कुछ खो जाता है
अंक से उदर तक
इतिहास उठा के देख लो
इंसान ने हर मोड पर
कुछ ना कुछ खोया जरुर है....

रविवार, 7 सितंबर 2014

भूख

भूख
सरेआम बिकती है
चौराहों पर
सड़क के किनारे
मंदिरों के बाहर
मस्जिदों के
छोटे गलियारों पर
पेट कि भूख
विचारों कि भूख
अरमानो कि भूख
दरअसल
रोटी का अस्तित्व
ही तब-तक है
जब तक भूख है

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

कैनवास के रंग

कुछ रंग
कैनवास पर फैले हुए
इन्तजार में हैं
अपने अस्तित्व के लिए 
अस्तित्व ...
कि उजाला बनेंगे या अँधेरा
सुबह की मखमली हँसी 
या शाम की सुरमई ख़ामोशी
सुन्दर स्वरुप गढ़ेंगे
या कोई वीभत्स रूप
कैनवास के वो रंग
अब भी निर्भर हैं
कलाकार की सोच पर ....

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

तितली

तरह तरह के रंग लिए
तितली
पहले उड़ा करती थी
घूमा करती थी
वन उपवन में
निर्भय निर्वेग
अब नहीं दिखती
शायद
रंग खोने का डर
या घरों में सजाने का प्रपंच....
अब उड़ने की
गवाही नहीं देता
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तितली तो उड़ने के लिए ही होती है ना ....

शुक्रवार, 27 जून 2014

एक बेशर्म....

बेशर्मी तब आई जब
कचोटा गया
ललकारा गया
उकताया गया
अपने अस्तित्व के लिए
अपने मान के लिए
......
जब अपने अंदर झाकोगे
तब समझोगे
......
शर्म करने को जब
कुछ बचता नहीं ...
तब इन्शान
बेशर्म ही बन जाता है .....