सोमवार, 1 दिसंबर 2014

याद रहेगी

याद रहेगी
मन के बिखरावों
कि सीमा
जलते बुझते ख़्वाबों
कि चोखट याद रहेगी
याद रहेगी
इस धरती से
उस अम्बर तक
उम्मीदों के बनने मिटने
कि अनबन याद रहेगी
याद रहेगी
दिन कि वो ख़ामोशी
चाँद कि रातों में आने कि
तानाशाही याद रहेगी
याद रहेगी
वादों के बंटवारे
दिल कि गहराई में
उलझन तडफन याद रहेगी

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

परिवर्तन

परिवर्तन
सिर्फ एक शब्द नहीं
इसके होते ही
बहुत कुछ नया हो जाता है
कुछ पुराना पीछे छूट जाता है
कुछ खो जाता है
कुछ मिल जाता है
बच जाते हैं
कुछ अवशेष.. कुछ यादें
कुछ ख्वाब .. कुछ वादे
सब कुछ पाने के बाद भी
मानव बहुत कुछ खो जाता है
अंक से उदर तक
इतिहास उठा के देख लो
इंसान ने हर मोड पर
कुछ ना कुछ खोया जरुर है....

रविवार, 7 सितंबर 2014

भूख

भूख
सरेआम बिकती है
चौराहों पर
सड़क के किनारे
मंदिरों के बाहर
मस्जिदों के
छोटे गलियारों पर
पेट कि भूख
विचारों कि भूख
अरमानो कि भूख
दरअसल
रोटी का अस्तित्व
ही तब-तक है
जब तक भूख है

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

कैनवास के रंग

कुछ रंग
कैनवास पर फैले हुए
इन्तजार में हैं
अपने अस्तित्व के लिए 
अस्तित्व ...
कि उजाला बनेंगे या अँधेरा
सुबह की मखमली हँसी 
या शाम की सुरमई ख़ामोशी
सुन्दर स्वरुप गढ़ेंगे
या कोई वीभत्स रूप
कैनवास के वो रंग
अब भी निर्भर हैं
कलाकार की सोच पर ....

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

तितली

तरह तरह के रंग लिए
तितली
पहले उड़ा करती थी
घूमा करती थी
वन उपवन में
निर्भय निर्वेग
अब नहीं दिखती
शायद
रंग खोने का डर
या घरों में सजाने का प्रपंच....
अब उड़ने की
गवाही नहीं देता
___________

तितली तो उड़ने के लिए ही होती है ना ....

शुक्रवार, 27 जून 2014

एक बेशर्म....

बेशर्मी तब आई जब
कचोटा गया
ललकारा गया
उकताया गया
अपने अस्तित्व के लिए
अपने मान के लिए
......
जब अपने अंदर झाकोगे
तब समझोगे
......
शर्म करने को जब
कुछ बचता नहीं ...
तब इन्शान
बेशर्म ही बन जाता है .....

दिल में जो आये वो पैगाम लिखना

दिल में जो आये वो पैगाम लिखना
हमने सहर लिखा.. तुम शाम लिखना

कुछ इस तरह से दिलों के रंज भुला
मेरे हिस्से कि धूप भी अपने नाम लिखना

कलम जमाने से रख के रूबरू
महके जो हर खिजां में वो बाम लिखना

मन को फैला के दुनियाँ से बड़ा
कभी काबा तो कभी चार-धाम लिखना

कौशल इस तरह अपनाना खुद को
दिल कि बात दिल से बे-लगाम लिखना

समय बड़ा बलवान

राजा को तू रंक बना दे
रंक को दे दे ताज
बिछडो को तू गले मिलाये
मीतो को बिछडाये
तेरे तो गुणगान करे
सब लोग लगाये आस
अब बदलेगी किस्मत मेरी
सर पर होगा ताज
बनके ऑफिसर आऊंगा
गर तू रहा मेहरबान
शासन देश का चलाऊंगा
गर तूने दे दिया ताज
समय बड़ा बलवान रे भाई
समय बड़ा बलवान ....    

शुक्रवार, 16 मई 2014

यूँ कुछ ...

आस-पास कुछ अहसासों की बात-चीत होती देखी है
दूर किनारे ,साँझ-सकारे पंछी की टोली देखी है
खोज-खबर रखने वालो की ये कैसी हालत देखी है
मुह में राम बगल में छूरी कैसी फरमाईस देखी है ||

भोले-भाले चेहरे है पर ,दिल में छुपी नफरत देखी है
ऊच-नीच और जात-पात की खिची हुयी सरहद देखी है
राह गुजरते यूँही चलते बात बड़ी रोचक देखी है
तू-तू में-में करने की हाय गजब फितरत देखी है ||

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

बातों बातों में -१...( लघु कथा)

ट्रिन ट्रिन ... डोरबेल कि उस कर्कस आवाज ने उसे नीद से जगा दिया था . घडी में टाइम देखा ये सुबह के ६ बजे थे और आज तो शनिवार है छुट्टी का दिन आज कौन सुबह सुबह परेशान करने आ गया |
यही सब बडबडाते हुए आँखें मलते उसने दरवाजा खोला तो देखा सामने १२,१३ साल कि एक छोटी बच्ची खड़ी है हाथ में एक थाली जिसपर एक भगोने में सरसों का तेल और कुछ सिक्के पड़े हैं , और थाली में माँ वैष्णव देवी दरवार कि फोटों |
बिना उस लड़की के कुछ बोले वो अपना पर्स लेने चला गया और १० रुपये उसकी थाली में रख कर दरवाजा बंद कर दिया ....
आखिर सुबह सुबह अपनी नीद खराब कर, भगवान और उस लड़की कि दशा पर बहस करके कौन मुसीबत मोल ले .....

शनिवार, 8 मार्च 2014

रात

अकसर धुप निकल आती है
रात बड़ी छोटी होती है
दूर सितारों के ढलते ही
परियों की बस्ती रोती है

चाँद अकेला बिखरे तारे
सब जगमग-जगमग होती है
सच्ची दुनिया से अच्छी तो
सपनो की बस्ती होती है

रविवार, 2 मार्च 2014

मुर्दा होना आसान नहीं

जीते जी
मुर्दा होना आसान नहीं
छोड़ने पड़ते है बहुत से ख्वाब
मारना पड़ता है अरमानो को
लंबी चादर ओढ़ सन्नाटे की
जज्बात, अल्फाज, हालात
सब कुछ मिटाने पड़ते हैं
क्यूंकि
जीते जी
मुर्दा होना आसान नहीं .....

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

यूँ ही ...

अंतर्द्वंद तेरे अंदर भी है मेरे भी
पत्थर से चोट लगने पर
दर्द तुझे भी होता है मुझे भी
कुछ निरीह भाव
तेरे मन को भी उद्द्वेलित करते हैं
मेरे मन को भी
विचारों के टकराव में स्पंदन
तेरे अंदर भी है मेरे भी
फर्क है तो वो बस इतना है
तुझे दिखाना आता है और मुझे छुपाना .....

रविवार, 26 जनवरी 2014

बता किस तरह से यूँ पहचान होगी

यूँही जान होगी यूँ पहचान होगी
कभी न कभी तो मेहरबान होगी

वो किस्मत जो रहती है रूठी सी हमसे
कभी तो नाचीज-ए-मेहमान होगी

तेरे दिल में शबनम मेरे दिल में कांटे
बता किस तरह से यूँ पहचान होगी ...

बुधवार, 8 जनवरी 2014

क्या-क्या खोया सुकून पाने को

क्या-क्या खोया सुकून पाने को
देर तक रोना पड़ा गम को भूल जाने को __

जब सफ़र में चले उजाले थे
शाम घिर आयी लौट आने को __

जान ले लेगी आज तन्हाई
कल तमाशा हुआ मानाने को __

बात कुछ ऐसी सुन ली हमने
जामे महफ़िल गए भुलाने को __

फिर सुकून दिल को रह सके कैसे
उसने दिल तोडा आजमाने को __

शनिवार, 4 जनवरी 2014

किसी से पूछते जब भाव है इस चीज का कैसा

किसी से पूछते जब भाव है इस चीज का कैसा
बढ़ाये मोल तारीखे, फकत अंदाज है कैसा

कसक कैसी, फजल कैसा, गनीमत सर तो जिंदा है
यही अब जिक्र है ताज़ा भला अंजाम है कैसा

हमी को लुटते हम से ही अपना घर चलते हैं
पड़ेगी जब जरूरते-जान,मुसाहिद नाम है कैसा

कभी अपना बसेरा गर ना लुट जाये तो फिर कहना
हर एक बात पर लुटता चमन सरकार है कैसा

परेशाँ हो के बैठा गर ना बैठूँगा तो क्या होगा
कि "कौशल" बात है इतनी परेशाँ यार है कैसा

जुबां खुली तो बस उसका ही एक नाम आये

जुबां खुली तो बस उसका ही एक नाम आये
हाथ में जब भी मेरे उसका ये रुमाल आये

अदाये है या है फलक पे आतिश--बिजली
पलक गिरे जो कभी,उसका ही ख़याल आये

जुड़ा है नाम मेरा उसकी बंदगी के लिए
इंतज़ार में उसके दिन ढले कि शाम आये

जिधर उठाऊं नजर बस वही मुकम्मल हो
ख़त का जवाब मेरे ,,शायद इस साल आये

तामाम बाते ......ये मेरी हैं आदतें "कौशल
बस इंतज़ार में हूँ वो आयें या उनका हाल आये

जल के वीराने में कुछ देर, राख हो जाते

जल के वीराने में कुछ देर, राख हो जाते
ख्वाब ऐसे ही घरोंदों से गुजरते जाते__

ख्वाब इन आखो के बेरम हैं बड़े
साथ चलते हैं कुछ दूर फिर मुड़ते जाते__

पैर दर पैर सिमटके चली है तन्हाई
जिस्त से पर्दा किये लोग बदलते जाते__