शुक्रवार, 16 मई 2014

यूँ कुछ ...

आस-पास कुछ अहसासों की बात-चीत होती देखी है
दूर किनारे ,साँझ-सकारे पंछी की टोली देखी है
खोज-खबर रखने वालो की ये कैसी हालत देखी है
मुह में राम बगल में छूरी कैसी फरमाईस देखी है ||

भोले-भाले चेहरे है पर ,दिल में छुपी नफरत देखी है
ऊच-नीच और जात-पात की खिची हुयी सरहद देखी है
राह गुजरते यूँही चलते बात बड़ी रोचक देखी है
तू-तू में-में करने की हाय गजब फितरत देखी है ||