गुरुवार, 31 मई 2012


यूँ ही कभी
नजरो से मेरी
ताकता है वो कहीं
शायद घटाए
या फिजायें
या लटो की
सुरमई बिखरी अदाए
अक्सर मेरी नजरो से
झाकता है वो ...
कुछ ख्वाब
बुनने की ललक
कुछ तिश्नगी का इरादा
कुछ पनाहों में बुलाना
कुछ शरारत का है वादा
जब भी नजर उठती है
वो ही झाकता है
हर कहीं
अक्सर निगाहों से मेरी...
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उसका इरादा साफ़ है
वो मनचला अहसास है
कुछ भाव है उसके लिए
कुछ अनकहे एहसास हैं
मेरी निगाहों से बयां
मेरे ही दिल के राग हैं
_____~कौशल ~______

बुधवार, 30 मई 2012



आज इसकी भी बात होने दो
सुरमई कायनात होने दो.....

शक्ल कैसी भी हो बुरी तो नहीं
तारीफे-महफ़िल में ये भी बात होने दो...

ख्वाब मंसूबे--बीराने तो नहीं
मत रोको इन्हें ,,बरसात होने दो....

जिंद ले के चले, बच गया जिस्म--चिराग
इसी में ज़ज्ब तारीख़े-आजाब होने दो....
______~कौशल~__________

जिंद : जिंदगी
आजाब: अनोखा ,निराला
ज़ज्ब : बंदी, जकड़ना

मंगलवार, 22 मई 2012





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वो भीगे पल वो बरसात अब भी याद रही
सफ़र में जब से चले साथ यही बात रही

वही सम्हालने खोने में ज़िन्दगी यूँ कटी
कुछ भीगे ख्वाब रहे कुछ ये मुलाकात रही

चिराग सामने रक्खा की रात ढल जाये
उसी में डूबके अह्सासे -वफ़ा साथ रही

कि जब से कोई फिकर मुझको रही "कौशल"
खफा-खफा सी पूरी तारीके-कायनात रही
__________~कौशल~______________




बुधवार, 16 मई 2012

मुझसे पहली सी मोहोबत मेरे महबूब न मांग

फैज साहब की एक ग़ज़ल की पंक्ति थी " मुझसे पहली सी मोहोबत मेरे महबूब न मांग " इसी पंक्ति पर कुछ लिखा है __ आशा है आप इरशाद फरमाएंगे
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मुझसे पहले सी वफाई मेरे महबूब न मांग

तेरे ही नाम मेरे दिन थे मेरी रातें थी
तेरे ही नाम ये कायनात ये सह्दाये थी
तुझे जो भूलना मुश्किल था सो तो हो भी गया
मोहोबत की वजह खो गयी अच्छा ही हुआ

पिघले जज्बात मेरे रूह तलह छाए थे
उस घडी न पूछिए तुम याद कितना आये थे
मर के भी न मरे क्या सितम बयां ये हुवा
मेरी गर्दिश की इन्तहां गुजर न पायी थे

अब जो परवाज सुनाई है बिखरे साजो ने
रोशने -गम हुआ है अहले-नजर रातो में
दिल की भूली हुयी बस्ती न मुझे याद दिला
मेरी कश्ती है अकेली तू मेरे साथ न आ

क्या दे पाऊंगा तुझे कुछ जले ख्वाबो के सिवा
एक भटकती हुयी बेमहर रातों के सिवा
अब न पास आ की आदत न रही ये मुझको
यही एक पल जो मिला खुद को समझ पाने को

मुझसे पहले सी महोबत मेरे महबूब न मांग ___
________~कौशल ~_______________

शनिवार, 12 मई 2012

ग़ज़ल:गीत


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पत्थर न चला जालिम शीशे के ख्वाब है ये
लग जाये टूट जाएँ,, नाजुक अलाव हैं ये
 
हमने अभी ये जाना, क्या समझेगा ज़माना
दिल की लगी से जलते, जिस्ते-चिराग हैं ये

थम जाये रोशनी तो गम क्यों करें बता दे
बस आज सिमटी सी एक जज्बाते-आग है ये

मजमा सा था लगा, जिस अंजुमन में एक दिन
विरानियाँ हैं छाई ,,,,, लम्बी सी रात है ये
___________~कौशल~__________

मंगलवार, 8 मई 2012

ग़ज़ल


========= : ग़ज़ल :============
चले  कहाँ से थे और कहाँ से हो आये
तलाश-ए-हक़* लिए हर गली गुजर आये

जहाँ  भी नजर उठाई तो तअस्सुब* पाया
हिदायतें* न मिली तो सलाम कर आये

वो एक मकतब-ए-फ़िक्र* नहीं थी मंजूर
जमीद* एक जगह रह के न बसर आये

वही ख्याल रहे हर पहर वो जानिब हो
दुवाओं में कभी खुद के भी वो असर आये

पयाम पढ़ तो लिया जिसने भी लिखा "कौशल"
हर एक लफ्ज़ में कुछ याद ,, कुछ नजर आये  
_________~कौशल~______________
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मकतब-ए-फ़िक्र = विचार-संप्रदाय, school of thought
तलाश-ए-हक़ = सत्य की खोज
जामिद (jaamid) = स्थिर
हिदायत = पथ-प्रदर्शन
तअस्सुब = पूर्वाग्रह, पक्षपात, प्रेजुडिस

बुधवार, 2 मई 2012

ग़ज़ल


तजरुबा आदमी का करते हैं

रोज़ जीते हैं रोज़ मरते हैं ।।


जब भी कूचे पे देख लें साए

राह वो छोड़ के गुजरते हैं ।।

परस्तिश की नहीं कोई चाहत
जिससे मिलतें हैं दिल-से मिलते हैं ।।

दोस्त मिल जाये जब कहीं कोई
रात पूरी ये जाम चलते हैं ।।

जब तमाशा ही देखना चाहो
देख लो लोग क्या-क्या करते हैं ।।
______ ~कौशल ~___________

मंगलवार, 1 मई 2012

मजदूर दिवस पर ,,बाल मजदूरी एक द्रश्य


नंगी सड़क पर
अविलम्ब चलते वो नन्हे पाँव
जिन्हें शायद डर है
मालिक की डांठ का
सर पे ईटों से भरा टोकरा ढोता
वो सकुचाता सा चला जा रहा है
वो बचपन
जो रोड़ी और बजरी में
कही खो गया है
बचपन के खिलोनों में
ईट और गारा
जिसे मुफ्त में मिला है
क्या ये दशा है या दुर्दशा ?
दशा ही होगी
क्योकि रत्ती भर भी
रोस नहीं है उसके चेहरे पर
या घर की मज़बूरी
रोस पैदा ही नहीं होने देती !!
मजबूर और मजदूर में
यही समानता है
मजदूर ही मजबूर है
और मजबूर ही मजदूर !!___
_________________: कौशल