सोमवार, 30 अप्रैल 2012

ये कैसा चमन मेरा


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संजीदा मौसम था या कही कुछ हो पड़ा था
कोई सहमा सा कूचे पे... खड़ा था__

डरी सी शक्ल सहमी सी निगाहें
वो साया था, या हड्डी का कड़ा था__

न आखो में कोई उम्मीद न दिल में उमंगे
अब किस से पूछें , हाल ऐसा क्यों बना था__

निगाहे उसकी पूछे क्या मेरी गलती रही
मेरा घर जलाने का किसका, फैसला था__

न हिन्दू था न मुस्लिम था में, फिर भी
गुजरने वाला हर शख्स, क्यों ये पूछता था__
======~कौशल १०-०२-२०१२ ~========

रविवार, 29 अप्रैल 2012

ग़ज़ल :मेरा साया


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मेरा साया मुझसे खफा है शायद
जिंदा रहने की ये एक अदा है शायद

जब तबीयत से देखना चाहा
शाम घिर आई, फजा है शायद

सहमे-सहमे खड़े हैं राह तलक
ये भी एक तजरुबा हैं शायद

मैने साए से पूछना चाहा
चुप रहा,,ये ही सजा है शायद
_____~कौशल~_____________

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

आदेश


शंखनाद हुआ
प्रभंजो का समावेश
विकराल अलापो का दुर्दांत अंत:क्लेश
जागो पांडवो
युद्ध की घडी चुकी है
अट्टहास लगाये काल
सर पे खड़ा है
उठो जागो
कौरव रूपी पाप की सेना
खड़ी है कुरुक्षेत्र में
आज धर्म का मान रखने
उतरना है तुम्हे रणभूमि में
शंखनाद हो चुका है
कुछ विकराल चहरे
डरावने कुछ वीभत्स
हमला करने को आतुर हैं
समाज में फैले कौरव
द्रोपदी का चीरहरण कर
नाच रहे हैं
समय है धनुष में संधान धरो
और कूद पड़ो रण में .......
_____________ :कौशल

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

ग़ज़ल: बात बाकी है


ख्वाब में एक बात बाकी है
सहर होने में रात बाकी है

अब तबीयत से ही मिलो हमसे
कुछ तुम्हारा ही साथ बाकी है

इस कदर आज भूल जाएँ खलिश
कुछ जो कहनी थी बात बाकी है

ख़तम दोनों के फासले यूँ हुए
सहमा-सहमा चिराग बाकी है

अब जो दिल चाहता है "कौशल" यूँ
प्यार की कायनात बाकी है  
_______________________: कौशल

रविवार, 22 अप्रैल 2012

ग़ज़ल


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क्या-क्या खोया सुकून पाने को
देर तक रोना पड़ा गम को भूल जाने को __

जब सफ़र में चले उजाले थे
शाम घिर आयी लौट आने को __

जान ले लेगी आज तन्हाई
कल तमाशा हुआ मानाने को __

बात कुछ ऐसी सुन ली हमने
जामे महफ़िल गए भुलाने को __

फिर सुकून दिल को रह सके कैसे
उसने दिल तोडा आजमाने को __
========================:कौशल

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

ग़ज़ल : चंद अलफ़ाज़



मैकदों की बड़ी इनायत थी
मुझको बस एक यही आदत थी__

परस्तिश के लिए खुदा ढूंढा
दिल लगाने की आदनायत थी__

अब जो मिलना हुआ तो ऐसा हुआ
जेहन में याद तेरे अब तलक सलामत थी__

रकीब पूछता है,अब तो कुछ इनायत कर
चंद महीनो की बस महोलत थी__

जाके बैठूं बता किस महफ़िल में
"कौशल" सीने में कुछ बगावत थी ___

_________~कौशल ~_________________



शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

बुजुर्गो की अनदेखी



उसका मन व्याकुल है
सोच रहा है क्या कमी रह गयी
क्या संस्कारो में
या कुछ विचारों में
पार्क पर बेंच पर बैठे वो व्याकुल है
हाथ में अखबार के चाँद पन्ने
आखो में मोटा चश्मा
शायद खुद को व्यस्त रखने का
साधन ढूड निकला हो उसने
बहू के ताने सुनने से बेहतर तो ये ही है
लोगो को आते जाते देखना
कुछ छोटे बच्चे झूला झूल रहे
उन्हें देख कर आखो में उसकी
कुछ पुरानी यादे तैर आयी
जब अंगुली थामे अपने बेटे का
वो घंटो उसको खेलते देखता बस
उसकी नादानियो को
देख कर मुस्कुराता .... फिर खो जाता
आकुलित उमंगें उन बूड़ी आखो में तैर आयी
आखिर ऐसा क्या हो गया जो
ऊँगली थाम के चलता था
आज जब उसकी ऊँगली पकड़ने की बारी आयी
तो उकताता है... मुह बनता है
बोझ की तरह बाते जताता है
जिसके लिए कभी पूरा घर खाली था
आज उसके पार उस घर के मालिक के लिए एक कमरा न है
वो ...........
पार्क में बैठा इसी उधेड़बुन में है
की क्या होगा जब शाम होगी ?
____________________________:(कौशल)

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

ये आधुनिक समाज

आधुनिक समाज में
हम चल रहे है
जहाँ शून्य शिथिल समाज
लाठी थामे चल रहा है
गढ़ रहा है कुछ अंतर्द्वंद के बीज
जो एक दिन वृक्ष बनेगा
वोही विसंगतिय फैलंगी
वोही कुहाषा होगा
ये आधुनिक समाज
वस्त्रो का आधुनिकरण कर
फिर से जंगली अवस्था में ले जायेगा
जब निर्जीव हो जाएँगी
सीमाए ...
तब ये अट्टहास लगाएगा
ये आधुनिक समाज
कुछ स्वरों में क्रांति लायेगा
जो क्रांति कम "रेवोलुसन" ज्यादा कहलायेगा
बिकंगे रिश्ते मान मर्यादा
फिर से कोहरा घिर जायेगा __
आधुनिकता की राह में
सभ्यता का चोगा पहन
हम भी इतरायेंगे
स्वयं की भाषा को छोड़
दूसरी भाषा में बोलकर अपना मान बढ़वायेगे
और ये अँधा समाज बाहे फैलाये
गले से लगाएगा
ये आधुनिक समाज
ये दिन भी दिखलायेगा__

_______________________: कौशल