मंगलवार, 10 जुलाई 2012

:फिर ना याद आ तू मुझे :

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क्या है वो बात ये बता तू मुझे
फिर से एक रोज आजमा तू मुझे .....

दर्द कैसा है ये खालिस क्यों है
ना दे बदली हुयी फिजा तू मुझे .....

चोट के साथ घाव लग जाता
याद कर के ना भूल जा तू मुझे .....

बारिशें हो रही यहाँ दिल में
अब ना हर रोज यूँ सता तू मुझे .....

जाम रक्खे है बचा याद के मोती डाले  
"कौशल" हर रोज ना पिला तू मुझे ....
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गुरुवार, 5 जुलाई 2012

ख्वाब आये थे खोजते मुझको.....


पता मेरा लिए कुछ पुराने ख्वाब आये थे
पूछते थे की वो शख्स रहता था यहां
इन्ही दरख्तों के नीचे इन्ही दीवारों के बीच
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.............
पूछा किये थे सभी से राहगुजर थे जो भी
कहाँ है वो शख्स जो रहता था यहाँ
बुनता था हमें जो खुले आसमा के नीचे
ख्वाब आये थे खोजते मुझको...............
किसी ने झिड़का किसी ने समझाया
नहीं पता कहाँ है वो शख्स जो रहता था यहाँ
क्यूँ ढूंडते हो ना मालूम बिखर गया है कहाँ
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.......
कहीं से एक हवा आई गुजती बहती
ख्वाबो ने दोहराया वही शख्स रहता था यहाँ
हवा बहती हुयी बोल कानो में  .......
ढूंडते हो जिसे वो शख्स कबका मर भी गया.......
अब तो सिर्फ जिस्म है जो रूह थी
उसका पता उसको भी नहीं जो रहता था यहाँ
ढूंडते हो किसे वो तो है ही नहीं.........
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.........................
__________~कौशल~______________

रविवार, 1 जुलाई 2012

गज़ल:रात गुजरी है यूँही छत पे सहर होने को


जाम बाँकी है ,पैमाने-असर होने को
रात गुजरी है यूँही छत पे सहर होने को

कहीं तन्हाई डसेगी तो मुझे पूछोगे
जान होती है यूंही उम्र बसर होने को

कोई सदका नहीं ,सलाम नहीं,बात नहीं
क्यों छुपाते हो गमे अपना सजर होने को

जिस घडी मेरी निगाहों ने खालिस देखी थी
वक्त वो भी था कुछ और नजर होने को  

जब से चलना ही रहा फितरते-अपनी कौशल
शाम देखि न सहर देखी फजल होने को
________~कौशल~______________