मेरे अपने
डायरी के पन्ने...
शुक्रवार, 27 जून 2014
एक बेशर्म....
बेशर्मी तब आई जब
कचोटा गया
ललकारा गया
उकताया गया
अपने अस्तित्व के लिए
अपने मान के लिए
......
जब अपने अंदर झाकोगे
तब समझोगे
......
शर्म करने को जब
कुछ बचता नहीं ...
तब इन्शान
बेशर्म ही बन जाता है .....
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