एक सूखा पत्ता था ,
पागल सा आवारा सा ,
उड़ता पंहुचा उपवन में,
भरा था फूलों से जो सारा,
मिल कर उनके साथ उसे
कुछ अहसासों का ज्ञान हुआ ,
प्यारे से फूल को देख ,
उसे भी उससे प्यार हुआ .
बाकी पत्ते भी कहते थे ,
फूल तो आखीर तेरा है ,
तुम दोनों का मिलन यहाँ ,
होना ही होना है ,,
पर नादा था पागल बेचारा ,
अपनी ही धुन का था आवारा ,
आधी जो दूर कहीं से आयी ,
उड़ गया फूल हाई दुहाए,
कुछ हाथ ना उसके आया,
प्यासा पड़ा रहा जमीन पर ,
देखता रहा मौसम बदलेगा ,
लेकिन हाई रे किस्मत ,
ना मौसम बदला ना फिजा
मिटटी में मिल गया एक दिन
बेखबर होकर बेचारा
इन्तजार करता रहा
पर ना वो फूल आया ना कोइ खबर ......
- कौशल "आवारा"
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