गुरुवार, 5 जुलाई 2012

ख्वाब आये थे खोजते मुझको.....


पता मेरा लिए कुछ पुराने ख्वाब आये थे
पूछते थे की वो शख्स रहता था यहां
इन्ही दरख्तों के नीचे इन्ही दीवारों के बीच
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.............
पूछा किये थे सभी से राहगुजर थे जो भी
कहाँ है वो शख्स जो रहता था यहाँ
बुनता था हमें जो खुले आसमा के नीचे
ख्वाब आये थे खोजते मुझको...............
किसी ने झिड़का किसी ने समझाया
नहीं पता कहाँ है वो शख्स जो रहता था यहाँ
क्यूँ ढूंडते हो ना मालूम बिखर गया है कहाँ
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.......
कहीं से एक हवा आई गुजती बहती
ख्वाबो ने दोहराया वही शख्स रहता था यहाँ
हवा बहती हुयी बोल कानो में  .......
ढूंडते हो जिसे वो शख्स कबका मर भी गया.......
अब तो सिर्फ जिस्म है जो रूह थी
उसका पता उसको भी नहीं जो रहता था यहाँ
ढूंडते हो किसे वो तो है ही नहीं.........
ख्वाब आये थे खोजते मुझको.........................
__________~कौशल~______________

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