यूँ ही हर्फ़ बनके फिरा करूँ
यूँ ही हर्फ़ बनके मिला करूँ
जो गुजर रही उस धूल में
तुझे कैसे अपनी सदा कहूँ
वो समझता मुझको रकीब है
में समझता उसको रकीब हूँ
ये तो है निगाह का मामला
में यहाँ रहूँ या वहाँ रहूँ
जो समझना चाहे मुझे समझ
हर रंग को तैयार हूँ
जो लगूं सुबह तो हूँ मखमली
जो बयार हूँ तो बयार हूँ
वो जो बोलते हैं खलूस से
मुझे याद करता नहीं है ‘हर्फ़’
जो रहा नहीं था कभी अलग
उसे कैसे खुद से जुदा कहूँ
shaandar koushu...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रामी दी...
हटाएंjanamdin ki dheron subhkamnaayen...
जवाब देंहटाएं:) धन्यवाद....
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