रविवार, 10 जून 2012

ग़ज़ल


मोहोबत का असर है ये कि कुछ खोया नहीं जाता
कभी दिनभर भटकता हूँ कभी सोया नहीं जाता

जहाँ में ढूढता था चेन ,शहरे-शोरगुल ही था
कभी महसूस होता कुछ ,कभी बोला नहीं जाता

जुबान खामोश है लेकिन समंदर बह रहा अन्दर
कभी लहरों में गुम जाऊं ,कभी खोया नहीं जाता

पुकारा जब निगाहों से तो हरदम बेकरारी थी
कभी जीभर निहारूं और कभी देखा नहीं जाता

लगी है चोट ऐसी, जिसका देखो क्या मजा कौशल
कभी हँसाना मुनासिब न, कभी रोया नहीं जाता
_________~कौशल ~_______________


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