गुरुवार, 31 मई 2012


यूँ ही कभी
नजरो से मेरी
ताकता है वो कहीं
शायद घटाए
या फिजायें
या लटो की
सुरमई बिखरी अदाए
अक्सर मेरी नजरो से
झाकता है वो ...
कुछ ख्वाब
बुनने की ललक
कुछ तिश्नगी का इरादा
कुछ पनाहों में बुलाना
कुछ शरारत का है वादा
जब भी नजर उठती है
वो ही झाकता है
हर कहीं
अक्सर निगाहों से मेरी...
********
उसका इरादा साफ़ है
वो मनचला अहसास है
कुछ भाव है उसके लिए
कुछ अनकहे एहसास हैं
मेरी निगाहों से बयां
मेरे ही दिल के राग हैं
_____~कौशल ~______

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें