शनिवार, 4 जनवरी 2014

किसी से पूछते जब भाव है इस चीज का कैसा

किसी से पूछते जब भाव है इस चीज का कैसा
बढ़ाये मोल तारीखे, फकत अंदाज है कैसा

कसक कैसी, फजल कैसा, गनीमत सर तो जिंदा है
यही अब जिक्र है ताज़ा भला अंजाम है कैसा

हमी को लुटते हम से ही अपना घर चलते हैं
पड़ेगी जब जरूरते-जान,मुसाहिद नाम है कैसा

कभी अपना बसेरा गर ना लुट जाये तो फिर कहना
हर एक बात पर लुटता चमन सरकार है कैसा

परेशाँ हो के बैठा गर ना बैठूँगा तो क्या होगा
कि "कौशल" बात है इतनी परेशाँ यार है कैसा

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