शनिवार, 28 जनवरी 2012

चलते चलते


बेवक्त ही चलने की आदत डालिए
ये शहरे तमाशा है सभी गौर करेंगे.....
किस बात पे मचल रहे ये ख्वाब रोकिये
मरघट पे खड़े हो के सभी बात करेंगे.....
कश्ती जो फंसी हो भवर में तो हो हैरान
डुबोने वाले सक्श तुझे अपने मिलेंगे.....
जब रात ढली हो तो सूरज क्या उगेगा
वो कुछ ख्याल ऐसे ही बेकार रहेंगे...... 
खुशियों में ही जी लो अपने रंग मिजाज
गम में बहाने के लिए आंसू ही मिलेंगे...
जब भी बहारें  आएँगी, भवरे भी आयेंगे 
बाकी समय ख्वाबो में ,यादों में मिलेंगे.....  :( कौशल :२८-०१-२०१२ )

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