शहनाईयां सी बजने लगी जंगल के शौर में
कोई आया है शायद ...
जिसके लिए दिन रात पलकें बिछाये था ये मन
ताकते ही ताकते कब दिन हुआ कब ढल गया
मालूम नहीं ......
वीरानियो की चादरें ओड़े हुए समां
कब ढल गया पिघल गया
मालूम नहीं ......
दीद की वो रात अब तो याद आयेगी
आँखों में वही प्यास फिर भी क्यों रह गयी
मालूम नहीं .....
शायरी की जुबानी याद "कौशल" आ गयी
'मौत' फिर भी क्यों न आयी
मालूम नहीं ... - (कौशल :15-sep-2011)
कोई आया है शायद ...
जिसके लिए दिन रात पलकें बिछाये था ये मन
ताकते ही ताकते कब दिन हुआ कब ढल गया
मालूम नहीं ......
वीरानियो की चादरें ओड़े हुए समां
कब ढल गया पिघल गया
मालूम नहीं ......
दीद की वो रात अब तो याद आयेगी
आँखों में वही प्यास फिर भी क्यों रह गयी
मालूम नहीं .....
शायरी की जुबानी याद "कौशल" आ गयी
'मौत' फिर भी क्यों न आयी
मालूम नहीं ... - (कौशल :15-sep-2011)
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