सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

वो झीनी खिड़की


वो झीनी सी खिड़की
जिससे झाकते बचपन बीता था
दिन भर उसके सामने बैठा
अपने खयालो में गुम
बस देखना

कभी तितली को उड़ते
कभी बंदर को डाली पर टहलते
खुद ही के साथ खेलना
बरबस लोगो को गुजरते देख
ख़ुशी से चिल्लाना
सरपट हाथ पैर हिलाना

खिड़की के सामने एक पीपल का पेड़
जिसपर दो गिलहरियाँ खेलती
उछलती कूदती
और एक पल में गुम हो जाती
नजरो का उन्हें ढूढना

कुछ यादे जो हमेशा साथ रहती हैं
ऐसी ही ___
बचपन की वो झीनी खिड़की
याद रही है आज भी _______      :कौशल


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