शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

ग़ज़ल >> इश्क


इश्क करना फिर इश्क को  भुला देना    
कारवां ज़िन्दगी का यूँ ही बिता देना  
है बड़े अर्ज़ इस ज़माने वालो को
कौन चाहता है दुनिया में पशेमाँ होना__

हवाए घिरने पे ये गुमा होना
कद्रदां आशमा मेरा होना
इश्क की ताशीर अच्छी लगती है
मुश्किल ही होता है इसे निभा लेना__

क्या जरुरी है यूँ ही तन्हा होना
बैठ कर सारी रात ये गुमा होना
रंग इश्क के बिखर ही जायेंगे
गर बंदगी हो तो इन्हें सजा लेना ___

कुछ बाते समझने का तजरुबा होना
आदमी का वक़्त से रुसवा होना
इश्क कर के फिर उसे भुला देना
दिल दुखता है इश्क में दगा देना___

क़यामत से पहले ये फलसफा होना
हीर-रांझे की तरह इश्क में फ़ना होना
जान जाये या क़त्ल हो जाये
इसकी खिदमत में ज़िन्दगी बिता देना__

-(कौशल)

पशेमाँ=शर्मिंदा ;

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