शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

ग़ज़ल : चंद अलफ़ाज़



मैकदों की बड़ी इनायत थी
मुझको बस एक यही आदत थी__

परस्तिश के लिए खुदा ढूंढा
दिल लगाने की आदनायत थी__

अब जो मिलना हुआ तो ऐसा हुआ
जेहन में याद तेरे अब तलक सलामत थी__

रकीब पूछता है,अब तो कुछ इनायत कर
चंद महीनो की बस महोलत थी__

जाके बैठूं बता किस महफ़िल में
"कौशल" सीने में कुछ बगावत थी ___

_________~कौशल ~_________________



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