रविवार, 29 अप्रैल 2012

ग़ज़ल :मेरा साया


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मेरा साया मुझसे खफा है शायद
जिंदा रहने की ये एक अदा है शायद

जब तबीयत से देखना चाहा
शाम घिर आई, फजा है शायद

सहमे-सहमे खड़े हैं राह तलक
ये भी एक तजरुबा हैं शायद

मैने साए से पूछना चाहा
चुप रहा,,ये ही सजा है शायद
_____~कौशल~_____________

1 टिप्पणी:

  1. सहमे-सहमे खड़े हैं राह तलक
    ये भी एक तजरुबा हैं शायद
    bahut sundar bhaav bhai

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