शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

बुजुर्गो की अनदेखी



उसका मन व्याकुल है
सोच रहा है क्या कमी रह गयी
क्या संस्कारो में
या कुछ विचारों में
पार्क पर बेंच पर बैठे वो व्याकुल है
हाथ में अखबार के चाँद पन्ने
आखो में मोटा चश्मा
शायद खुद को व्यस्त रखने का
साधन ढूड निकला हो उसने
बहू के ताने सुनने से बेहतर तो ये ही है
लोगो को आते जाते देखना
कुछ छोटे बच्चे झूला झूल रहे
उन्हें देख कर आखो में उसकी
कुछ पुरानी यादे तैर आयी
जब अंगुली थामे अपने बेटे का
वो घंटो उसको खेलते देखता बस
उसकी नादानियो को
देख कर मुस्कुराता .... फिर खो जाता
आकुलित उमंगें उन बूड़ी आखो में तैर आयी
आखिर ऐसा क्या हो गया जो
ऊँगली थाम के चलता था
आज जब उसकी ऊँगली पकड़ने की बारी आयी
तो उकताता है... मुह बनता है
बोझ की तरह बाते जताता है
जिसके लिए कभी पूरा घर खाली था
आज उसके पार उस घर के मालिक के लिए एक कमरा न है
वो ...........
पार्क में बैठा इसी उधेड़बुन में है
की क्या होगा जब शाम होगी ?
____________________________:(कौशल)

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