सोमवार, 2 अप्रैल 2012

ये आधुनिक समाज

आधुनिक समाज में
हम चल रहे है
जहाँ शून्य शिथिल समाज
लाठी थामे चल रहा है
गढ़ रहा है कुछ अंतर्द्वंद के बीज
जो एक दिन वृक्ष बनेगा
वोही विसंगतिय फैलंगी
वोही कुहाषा होगा
ये आधुनिक समाज
वस्त्रो का आधुनिकरण कर
फिर से जंगली अवस्था में ले जायेगा
जब निर्जीव हो जाएँगी
सीमाए ...
तब ये अट्टहास लगाएगा
ये आधुनिक समाज
कुछ स्वरों में क्रांति लायेगा
जो क्रांति कम "रेवोलुसन" ज्यादा कहलायेगा
बिकंगे रिश्ते मान मर्यादा
फिर से कोहरा घिर जायेगा __
आधुनिकता की राह में
सभ्यता का चोगा पहन
हम भी इतरायेंगे
स्वयं की भाषा को छोड़
दूसरी भाषा में बोलकर अपना मान बढ़वायेगे
और ये अँधा समाज बाहे फैलाये
गले से लगाएगा
ये आधुनिक समाज
ये दिन भी दिखलायेगा__

_______________________: कौशल

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